नारायण नागबली

नारायण नागबली क्या है? ( पितृ दोष )

नारायण नागबली यह दोनों विधि मानव की अपूर्ण इच्छा, कामना पूर्ण करने के उद्देश से कि जाती हैं। नारायणबलि और नागबली ये अलग-अलग विधियां हैं। नारायण बलि का उद्देश मुखत: पितृदोष निवारण करना है। और नागबली का उद्देश सर्प/सांप/ नाग हत्या का दोष निवारण करना है। केवल नारायणबली या नागबली नहीं कर सकते, इसलिए ये दोनों विधियां एकसाथ ही करनी पड़ती हैं।

पितृदोष निवारण हेतु नारायण नागबली कर्म करना शास्त्रों में निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबंधित दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते हैं। यह कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्‍यक है। जिन जातकों के माता पिता जीवित हैं वे भी यह कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद कुंवारा ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकता है। संतान प्राप्‍ति  एवं  वंश वृद्धि के लिए यह कर्म सपत्‍नीक करने चाहिए। यदि पत्‍नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्‍नी के बिना भी यह कर्म किये जा सकते हैं । यदि पत्‍नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो यह कर्म एक साल तक नहीं किये जाते हैं । माता या पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

दोनों प्रकार की विधि निम्नलिखित इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए की जाती हैं l

संतान प्राप्ति के लिए भूत प्रेतों से छुटकारा पाने के लिए।

यदि घर के किसी व्यक्ति कि अनुचित घटनाओं (अपघात, आत्महत्या, पानी में डूबना) के कारण मृत्यु होती है, और इसकी वजह से अगर घर में कोई समस्याए आती है, तो उन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यह विधि की जाती है l

"नारायण नागबली पूजा दो अलग अनुष्ठान हैं।"

नारायण बली को पूर्वज के श्राप से मुक्त करने के लिए किया जाता है जब कि नागबली को सांप को मारने से किए गए पाप से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। विशेष रूप से कोबरा जो भारत में पूजा जाता है।

इस विधि को केवल त्र्यंबकेश्वर मंदिर में किया जा सकता है।

नारायणबली अनुष्ठान पूर्वजों की आत्माओं की असंतुष्ट इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए किया जाता है जो दुनिया में फंस गए हैं और अपने बच्चों को परेशान करते हैं।

नारायण बली हिंदू अंतिम संस्कार की तरह ही है। इसमें गेहूं के आटे के एक कृत्रिम शरीर का उपयोग करते हैं।

आचार्य मंत्रों का उपयोग उन आत्माओं से निवेदन करने के लिए करते हैं जो विभिन्न इच्छाओं से जुड़ी हुई हैं।

अनुष्ठान उन आत्माओं को कृत्रिम शरीर में प्रवेश कराता है और अंतिम संस्कार उन्हें मुक्त कर देता है।

कोबरा को मारने के पाप से मुक्त होने के लिए लोग नागबली अनुष्ठान करते हैं।

इस अनुष्ठान में, वे गेहूं के आटे से बने साँप के शरीर का अंतिम संस्कार भी करते हैं। नारायण नागबली त्रयंबकेश्वर में किए गए मुख्य अनुष्ठानों में से एक है।

प्राचीन धर्मग्रंथ, जो विभिन्न धार्मिक संस्कारों की व्याख्या करते हैं, उल्लेख करते हैं कि यह विशिष्ट समारोह केवल त्र्यंबकेश्वर में किया जाना चाहिए।

हम इस परंपरा के बारे में स्कंदपुराण और पद्म पुराण में उल्लेख पा सकते हैं।

नारायणबली और नागबली के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

यह अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया जाता है।

आइये जाने की क्या हैं नागबलि-नारायण बलि..???

नारायण नागबली विधि एक महत्वपूर्ण विधि है जो अपने पित्रों के नाम से की जाती है ताकी उनकी आत्मा को शांती मिले और वह इस जीवन मरण के बंधन से मुक्त हों l

इस विधि का प्रमुख उद्देश है अपने अतृप्त पितरों को तृप्त कर उन्हें सदगती दिलाना। क्योंकि मरने वालों की सभी इच्छाएँ पूरी नहीं हो सकती हैं। कुछ तीव्र इच्छाएँ मरने के बाद भी आत्मा का पीछा नहीं छोड़ती हैं। इस स्थिती में वायुरूप होने के पश्चात भी आत्मा पृथ्वी पर ही विचरण (भ्रमण) करती है। वास्तव में जीवात्मा सूर्य का अंश होती है। जो निसर्गत: मृत्यु के पश्चात सूर्य की ओर आकर्षित होती है। जैसे पृथ्वी पर जल समुद्र की ओर आकर्षित होता है। किंतु वासना एवं इच्छाएँ आत्मा को इसी वातावरण में रहने के लिए मजबूर कर देती हैं। इस स्थिति में आत्मा को बहुत पीड़ाएँ होती हैं। और अपनी पिड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए वंशजों के सामने सांसारिक समस्या का निर्माण करता है।

"नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहूर्त"

सामान्यतया: नारायण बलि कर्म, पौष तथा माघ महिने में गुरु तथा शुक्र के अस्त होने पर नहीं किये जाने चाहिए। परंन्‍तु ‘निर्णय सिंधु’ के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबली कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक एक त्रिपाद नक्षत्रा को निषिध्द माना गया है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पुर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु उत्तरा विशाखा, उत्तराषाढा और उत्‍तराभाद्रपद, यह छ: नक्षत्र ‘त्रिपाद नक्षत्र’ माने गये है। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है की पितरों के असंतुष्ट हो जाने से सात जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है और देवताओं के रुष्ट हो जाने से तीन जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है। देवता और पितर जिससे रुष्ट हो जाते हैं उसके यज्ञ और पुत्र दोनों धर्मों का नाश हो जाता है।

पितृ गण कहते हैं कि क्या हमारे वंश में कोई ऐसा भाग्यशाली जन्म लेगा, जो शीतल जल वाली नदी के जल से हमें जलांजलि देकर तथा दुग्ध, मूल, फल, खाघान सहित तिल मिश्रित जल से श्राद्ध कर्म करेगा।

याज्ञवल्क्यस्मृति में श्राद्ध-कर्म को लेकर कहा गया है कि श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन-धान्य, सुख-समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है।

धन्यवाद।

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